बढ़ते चलो
अभी ना मन्जिल मिली है
ना दिल को सुकून
अभी पड़ा है फ़ासला
उसे मिटाना है।
हौसला रखना है
हर तुफान में
इच्छाशक्ति को मजबुत बनाना है
एक दिन बुन्द को खुद में
दरिया को मिलाना है।
✍🏼कर्मवीर सिहँ लाखलाण 'पातवान'
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कर्मवीर लाखलाण हरियाणा शिक्षक होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी है पढ़िए *समुन्द्र की नाव*
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